
अर्जुन को उस नए माहौल में सहज होने में समय लग रहा था। पर यह कहीं से नहीं कहा जा सकता कि वह कोशिश नहीं कर रहा था। बस… सब कुछ उसके लिए बहुत नया था। तीन दिन बीत चुके थे, और अभी तक वह किसी टीचर से ठीक से मिला भी नहीं था। वह मन ही मन सोचता—क्या सच में इतनी कम उम्र में मुझे ये सब मिल जाना चाहिए था?
पर अब पीछे मुड़ने का सवाल ही नहीं था।
उस दिन अर्जुन का पहला आधिकारिक क्लास-डे था। सुबह 7 बजे ही वह तैयार होकर नाश्ता कमरे में ही मंगवा लेता है—अशोक ने समझाया था कि निकलने से पहले कमरा ही उसका छोटा-सा आश्रय रहेगा।

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